Ritikalain Hindi Sahitya

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Free Online Course: Ritikalain Hindi Sahitya provided by Swayam is a comprehensive online course, which lasts for 16 weeks long. The course is taught in Hindi and is free of charge. Upon completion of the course, you can receive an e-certificate from Swayam. Ritikalain Hindi Sahitya is taught by Prof. Avadhesh Kumar.

Overview
  • रीतिकालीन हिंदी कविता की शुरूआत केशवदास की ‘कविप्रिया’ और ‘रसिकप्रिया’ से होती है बाद में ‘चिंतामणि’ के लक्षण ग्रंथों की अखण्ड परंपरा चली उसके बाद तो लक्षण ग्रंथों की बहुतायत सी होने लगी। इसी बीच कविता लिखने की एक विशिष्ट परिपाटी बन गई। इस समय के आचार्य कवि संस्कृत साहित्य की जिस उत्तर कालीन परंपरा के अनुयायी थे उनमें भी बहुत सूक्ष्म विश्लेषण अनुपस्थित था। चिंतन का धरातल यहाँ इसलिए भी बहुत विकसित नहीं था कि गद्य की विवेचन शैली इन आचार्य कवियों के पास नहीं थी इनका शास़्त्र ज्ञान अपेक्षाकृत सीमित और अपरिपक्व था इनकी पहुँच ‘चंद्रालोक’, ‘कुवलयानंद’, ‘रसतरंगिणी’, ‘रसमंजरी’ अधिक से अधिक ‘काव्य प्रकाश’ और ‘साहित्य दर्पण’ तक थी।
    ‘ध्वन्यालोकलोचन’, ‘वकोक्तिजीवितम’, ‘काव्यांलकार सूत्रवृत्ति’ जैसे ग्रंथों तक प्रायः यह नहीं गये। कुलपति मिश्र जैसे एकाध आचार्य कवियों में काव्यांगों के अंतर्सम्बन्ध का प्रश्न चाहे उठाया हो, अधिकतर कवि काव्य लक्षणों की सामान्य चर्चा तक ही सीमित थे। हिंदी के रीति ग्रंथों में प्रायः तीन प्रकार की निरूपण शैली दिखाई पड़ती है – 1. काव्य प्रकाश की निरूपण शैली-जिसमें सभी काव्यांगों पर विचार किया गया। जैसा सेनापति का ‘काव्य कल्पद्रुम’ चिंतामणि का ‘कविकुल कल्पतरु’ ‘काव्य विवेक’, कुलपति मिश्र का ‘रस रहस्य’, 2. श्रृंगार तिलक, रसमंजरी आदि की श्रृंगार रसमयी नायिका भेद वाली शैली जिसमें श्रृंगार अंगों का विवेचन तथा नायिका भेद निरूपण व्याख्यान है- जैसे केशवदास की ‘रसिक प्रिया’, मतिराम का ‘रसराज’, देव का ‘भाव विलास’, ‘रसविलास’, भिखारीदास का ‘रस निर्णय’, 3. तीसरी शैली जयदेव के ‘चंद्रालोक’ और अप्पय दीक्षित के ‘कुवलयानंद’ के अनुकरण पर चलने वाली अलंकार निरूपण शैली जैसी करनेस का ‘श्रुतिभूषण’ महाराज जसवंत सिंह का ‘भाषा भूषण’, सूरति मिश्र का ‘अलंकार माला’ आदि। इसी काल में वीर रस के ओजस्वी कवि भूषण भी अपनी विशिष्ट पहचान बनाते हैं।

    आचार्य राम चंद्र शुक्ल ने रीतिकाल का समय संवत 1700 से 1900 निर्धारित करते हुए यह भी कहा कि रस की दृष्टि से विचार करते हुए कोई चाहे तो उसे ‘श्रृंगार काल’ कह सकता है। आचार्य विश्वनाथ प्रसाद मिश्र ने रीतिकाल को ‘श्रृंगारकाल’ नाम देते हुए उसे तीन वर्गां में विभाजित किया- 1. रीतिबद्ध 2. रीति सिद्ध 3. रीतिमुक्त। रीतिबद्ध में चिंतामणि, भिखारीदास तथा देव रीतिसिद्ध में बिहारीलाल तथा रीतिमुक्त काव्य में घनानंद, आलम, बोधा तथा ठाकुर जैसे महत्वपूर्ण कवि आते हैं। रीतिबद्ध एवं रीतिसिद्ध परंपरा में ऐंद्रिकता का जो विस्तार दिखाई देता है वह राजदरबारों में विकसित काव्य का परिणाम है जिसका भोज के ‘श्रृंगार प्रकाश’ के आलोक में विकसित हुआ रूप देखा जा सकता है। रीतिबद्ध कवियों से अलग हटकर इस दौर में कुछ ऐसे कवि भी हुए जिन्होंने अपनी सहज भावानूभूति को वाणी दी। घनानंद, आलम, बोधा, ठाकुर आदि इस प्रवृत्ति के मुख्य कवि हैं। इनके प्रेम वर्णन में अपेक्षाकृत एक निष्ठता है।

    इस काल में कुछ गद्य रचनाएं भी लिखी गई जो ब्रजी और खड़ी बोली के मिश्रण के रूप में व्यवहृत हैं। जिन पर ‘चौरासी वैष्णवों की वार्ता’ और ‘दो सौ बावन वैष्णवों’ का प्रभाव था। अन्य भारतीय भाषाओं की तुलना में हिंदी के रीतिकाल का दौर बहुता लंबा है। सीमित विषय पर लगभग ढाई-तीन सौ साल तक लगातार कविता लिखी जाती रही। रीतिकाव्य की सबसे बडी उपलब्धि यह रही कि इसने हिंदी के एक बहुत बडे़ सरस सहदय समाज का निर्माण किया। सांस्कृतिक एवं कलात्मक वैभव चरम पर रहा। कलात्मक चातुरी लाक्षणिक बैचित्र्य इस काल की अनुपम देन कही जा सकती है। साथ ही ब्रजभाषा भी वाकसिद्ध कवियों के हाथों मज-सँवर कर अत्यंत लोचयुक्त ललित और व्यंजक काव्य भाषा बन गई।

    अनेक सीमाओं के बावजूद रीतिकाव्य ने हिंदी साहित्य में ‘काव्य कला’ और ‘शब्द साधना’ की चेतना जगाई। इससे इनकार नहीं किया जा सकता । इसी काल में बृंद और गिरधर कविराय जैसे कवियों ने नीतिकाव्य रचकर उसके आयाम को विस्तृत किया। एक प्रकार से यह काल भक्ति, नीति और श्रृंगार की त्रिवेणी का काव्य है। यद्यपि इसमें श्रृंगार की प्रधानता है डॉ. नगेंद्र ने श्रृंगारिकता को ‘रीतिकाल की स्नायुओं में बहने वाली रक्त धारा’ कहा है। फिर भी जीवन की सहज अनुभूतियों का सहज एवं सात्विक रूप कम नहीं है। रीतिकाव्य सीमित विषय पर समग्रता का काव्य है। रीतिकाव्‍य, काव्‍य की कसौटी पर कसी हुई कविता है। यह काव्‍य का वह विशिष्‍ट कालखंड है जिसमें कविता मानव अनुभव के मनोदैहिक पक्ष पर केंद्रित है, जो मनुष्‍य और प्रकृति के अंत:संबंध को मानव को प्रेक्षक के रूप में रखकर अभिव्‍यक्‍त होती है। रीतिकाव्‍य में ‘बारहमासा’ और ‘सतसई’ जैसे काव्‍यभेदों को प्रकृति, परिवेश और मनुष्‍य के मनोदैहिक पक्षों का काव्‍यशास्‍त्र की परिधि में रखकर काव्‍य के चमत्‍कार एवं आस्‍वाद के नए रूपों को प्रस्‍तुत किया है।

    इस पाठ्यक्रम का उद्देय है -

    · रीतिकालीन हिंदी साहित्‍य के वैशिष्‍ट्य को रेखांकित करना।
    · रीतिकालीन साहित्‍य और समाज के अंतर्संबंधों को स्‍पष्‍ट करना।
    · रीतिकाव्‍यधारा के महत्‍वपूर्ण रचनाकारों की उपलब्धियों से परिचित कराना।
    · रीतिकालीन साहित्‍य के प्रमुख हिंदी आलोचकों की आलोचना-दृष्टि से परिचित कराना।
    · हिंदी साहित्‍य की परंपरा के नैरंतर्य को समझाना।

Syllabus
  • COURSE LAYOUT

    पहला सप्‍ताह

    1. रीतिकालीन साहित्‍य और उसकी पृष्‍ठभूमि

    2. काव्‍यशास्‍त्र की परंपरा और रीतिकाव्‍य

    3. रीतिकालीन काव्‍य एवं लक्षण ग्रंथों की परंपरा

    4. रीतिकाव्‍य का स्‍वरूप और वैशिष्‍ट्य

    दूसरा सप्‍ताह

    5. रीतिकाल का नामकरण एवं वर्गीकरण

    6. आचार्य रामचंद्र शुक्‍ल की दृष्टि में रीतिकाल

    7. आचार्य विश्‍व‍नाथ प्रसाद मिश्र की दृष्टि में रीतिकाल

    8. समकालीन प्रमुख आलोचकों की दृष्टि में रीतिकाल

    तीसरा सप्‍ताह

    9. रीतिकालीन काव्‍य भाषा

    10. रीतिकाव्‍य और सौंदर्य बोध

    11. रीतिकाल में कृष्‍ण काव्‍य

    12. रीतिकाव्‍य में प्रकृति चित्रण

    चौथा सप्‍ताह

    13. रीतिकाल में गद्य लेखन

    14. रीतिकाव्‍य में लोक जीवन

    15. रीतिकाल की राष्‍ट्रीय एवं सांस्‍कृतिक काव्‍य धारा

    16. रीतिकाव्‍य में नीति तत्‍व

    पांचवा सप्‍ताह

    17. रीतिकाल के अलक्षित कवि

    18. कृष्‍ण भक्ति परंपरा में रीतिकाव्‍य का अवदान

    19. राम भक्ति परंपरा में रीतिकाव्‍य का अवदान

    20. केशवदास की काव्‍य कला

    छठा सप्‍ताह

    21. आधुनिक हिंदी काल में रीति परंपरा के कवि

    22. काव्‍य शास्‍त्रीय परंपरा और चिंतामणि

    23. मतिराम की काव्‍य संवेदना

    24. भूषण की राष्‍ट्रीय एवं सांस्‍कृतिक चेतना

    सातवां सप्‍ताह

    25. भिखारीदास का काव्‍य मर्म

    26. रहीम के साहित्‍य में लोक चेतना

    27. सेनापति का प्रकृति चित्रण

    28. बिहारी का काव्‍य वैभव

    आठवां सप्‍ताह

    29. बिहारी का वाग्‍वैदग्‍ध्‍य

    30. प्रेम की पीर के कवि घनानंद

    31. पद्माकर का काव्‍य सौंदर्य

    32. आलम की काव्‍य संवेदना

    नवां सप्‍ताह

    33. रसोन्‍मत्‍त कवि बोधा

    34. रीतिमुक्‍त कवि ठाकुर का काव्‍य सौंदर्य

    35. रसलीन का सौंदर्य वर्णन

    36. सूक्तिकार कवि वृंद

    दसवां सप्‍ताह

    37. लाल कवि की प्रबंध पटुता

    38. विद्यारसिक कवि महराज विश्‍वनाथ सिंह

    39. नीति की कुण्डलियों के कवि गिरधर कविराय

    40. ऋतु वर्णन एवं उल्‍लास का कवि द्विजदेव