Hindi Bhasha Sanrachna, Janpadiya Bhashayein Evam Kaushal

Go to class
Write Review

Free Online Course: Hindi Bhasha Sanrachna, Janpadiya Bhashayein Evam Kaushal provided by Swayam is a comprehensive online course, which lasts for 12 weeks long. The course is taught in Hindi and is free of charge. Upon completion of the course, you can receive an e-certificate from Swayam. Hindi Bhasha Sanrachna, Janpadiya Bhashayein Evam Kaushal is taught by Dr. Surendra Yadav.

Overview
  • भाषा के साहित्यिक रूप के अतिरिक्त लोक साहित्य में धड़कता भाषा का जनपदीय रूप, जनजीवन का आईना माना जाता है। जनपदीय भाषाओं में अवधी, ब्रज, भोजपुरी मगही, मैथिली, छत्तीसगढ़ी आदि प्रमुख हैं, जिनसे साहित्य समृद्ध हुआ है। ब्रज एवं अवधी में रचे गए साहित्य का अनुशीलन न केवल ब्रज क्षेत्र एवं अवध के जीवन एवं साहित्य को समझने के लिए आवश्यक है अपितु एक लम्बे समय तक हिंदी साहित्य में इन दोनों जनपदीय भाषाओं ने अपना प्रभाव अमिट रखा। एक से दूसरी पीढ़ी को वाचिक परम्परा द्वारा साहित्य की संपदा हस्तांरित होती रही इन्हें संरक्षित करने का कार्य बीसवीं सदी में प्रारंभ हुआ। लोक साहित्य में भारतीय संस्कृति की सुवास रची बसी है। ग्राम्य परिवेश यहीं साकार होता देखा जा सकता है। इसी परिप्रेक्ष्य में धान का कटोरा कहे जाने वाले छत्तीसगढ़ की माटी की गंध, छत्तीसगढ़ी साहित्य के अनुशीलन द्वारा महसूस की जा सकती है।
    हिंदी भाषा के अध्ययन में उसकी संरचना के प्रत्येक आयाम को समझना आवश्यक है। तत्सम, तद्भव, देशज, विदेशी, संकर आदि शब्द प्रकार स्पष्ट करते हैं कि जननी भाषा संस्कृत की शब्दावली के अतिरिक्त वर्तमान हिंदी भाषा में उपलब्ध शब्द एवं भाषा का स्वरूप यह स्पष्ट करता है कि भाषा किस तरह शब्दों के लालन-पालन, परिवर्तन एवं नवनिर्माण की प्रक्रिया को वहन करती है, शब्दों की यात्रा से भाषा की विकास यात्रा की कहानी सुनी एवं समझी जा सकती है। हिंदी भाषा के स्वरूप के लिए संधि, समास, संक्षिप्तियों जैसे अध्याय हिंदी भाषा की नींव को मज़बूत करने के लिए आवश्यक हैं वहीं स्थानीयता के आधार पर या अन्यान्य कारणों से होने वाली भाषागत त्रुटियों को समझकर उसका संशोधन, सुधार या परिष्कार भाषा के प्रति होने वाले न्याय का आवश्यक पक्ष है। छोटी-छोटी कविताओं के भावबोध, रोचक व्यंग्य, शब्द चित्र आदि के अध्ययन, सदैव भाषागत कौशल को विकसित करते हैं। हिंदी भाषा के वर्तमान स्वरूप को समझने के लिए आवश्यक है कि उसकी विविध प्रयोजनीयता के अनुकूल उसकी धड़कनें चित्रपट, रंगमंच, साक्षात्कार, भारतीय संगीत में सुनी जायें।
    वर्तमान प्रौद्योगिकी के युग में लिपि को लेकर उठ रहे प्रश्नों के साथ ही देवनागरी लिपि की विकास यात्रा एवं इतिहास को जानना आवश्यक है। देवनागरी लिपि के स्वरूप का अध्ययन एवं उसकी वैज्ञानिकता स्वमेव ही यह सिद्ध करती है कि उसमें परिवर्तन तो हो सकता है किंतु उसका बना रहना क्यों आवश्यक है? समस्त तथ्य इस विषय के अध्ययन द्वारा साहित्य एवं भाषा संबंधी समझ को विकसित करने में सहायक होंगे।

Syllabus
  • COURSE LAYOUT

    Weeks Weekly Lecture Topics
    Week 1 1: भाषा की महत्ता 2: भाषा में अपठित का महत्व 3: शब्द संरचना एक परिचय
    Week 2 4: शब्द प्रकार एक परिचय 5: हिन्दी की शब्द सम्पदा 6: सार लेखन एवं पल्लवन
    Week 3 7: संक्षिप्तियाँ 8: देवनागरी लिपि की विषेशताएँ 9: कोश के अखाड़े में कोई पहलवान नहीं उतरता: साक्षात्कार विधा
    Week 4 10: व्यंग्य विद्या मकड़ी का जाला 11: समास-संरचना एवं प्रकार 12: सन्धि - परिभाषा एवं भेद, भाग-1 13: सन्धि - परिभाषा एवं भेद, भाग-2

    Week 5 14: त्रुटि संशोधन, भाग-1 15: त्रुटि संशोधन, भाग-2 16: अवधी भाषा साहित्य 17: अवधी लोक साहित्य, भाग-1
    Week 6 18: अवधी लोक साहित्य, भाग-2 19: अवधी भाषा-साहित्य का वैशिष्ट्य, भाग-1 20: अवधी भाषा-साहित्य का वैशिष्ट्य, भाग-2
    Week 7 21: ब्रज भाषा और उसका साहित्य 22: ब्रज भाषा काव्यः कलात्मक उत्कर्ष, भाग-1 23: ब्रज भाषा काव्यः कलात्मक उत्कर्ष, भाग-2
    Week 8 24: ब्रज भाषा का राष्ट्रीय परिदृश्य, भाग-1 25: ब्रजभाषाकाराष्ट्रीयपरिदृश्य, भाग-2 26: छत्तीसगढ़ी कहानी का विकास 27: छत्तीसगढ़ी उपन्यासWeek 9 28: छत्तीसगढ़ी कविता का विकास 29: कहानी सिनेमा की भाग-1

    Week 10 30: कहानी सिनेमा की भाग-2 31: कहानी सिनेमा की भाग-3 32: भारतीय रंगमंच, भाग-1
    Week 11 33: भारतीय रंगमंच, भाग-2 34: भारतीय कला भाग-1 (स्थापत्य) 35: भारतीय कला भाग-2 (मूर्तिकला व चित्रकला)
    Week 12 36: संगीत स्वर प्रवेषिका भाग-1 37: संगीत स्वर प्रवेषिका भाग-2 38: संगीत स्वर प्रवेषिका भाग-3